भारतीय विश्वकोश
काराकोरम एक विशाल पर्वत शृंखला है जिसका विस्तार पाकिस्तान, भारत और चीन के क्रमश: गिलगित-बल्तिस्तान, लद्दाख़ और शिन्जियांग क्षेत्रों तक है। यह एशिया की विशाल पर्वतमालाओं में से एक है और हिमालय पर्वतमाला का एक हिस्सा है। काराकोरम किर्गिज़ भाषा का शब्द है जिस का मतलब है 'काली भुरभुरी मिट्टी'। पुराणों में इस पर्वतमाला का संस्कृत नाम कृष्णगिरि (काला पहाड़) दिया गया है।[1][2]
विश्व के किसी भी स्थान की अपेक्षा, काराकोरम पर्वतमाला में पाँच मील से भी ऊँची सबसे अधिक चोटियाँ स्थित हैं (60 से ज़्यादा), जिनमें दुनिया की दूसरी सबसे ऊँची चोटी के2, (8611 मी / 28251 फुट) भी शामिल है। के2 की ऊँचाई विश्व के सर्वोच्च शिखर एवरेस्ट पर्वत (8848 मी / 29029 फुट) से सिर्फ 237 मीटर (778 फीट) कम है।
काराकोरम शृंखला का विस्तार 500 किमी (311 मील) तक है और ध्रुवीय क्षेत्रों को छोड़कर दुनिया के सबसे अधिक हिमनद इसी इलाके में हैं। ध्रुवीय क्षेत्रों से बाहर सियाचिन ग्लेशियर 70 कि॰मी॰ और बिआफो ग्लेशियर 63 कि॰मी॰ की लंबाई के साथ दुनिया के दूसरे और तीसरे सबसे लंबे हिमनद हैं।
काराकोरम, पूर्वोत्तर में तिब्बती पठार के किनारे और उत्तर में पामीर पर्वतों से घिरा है। काराकोरम की दक्षिणी सीमा, पश्चिम से पूर्व, गिलगित, सिंधु और श्योक नदियों से बनती है, जो इसे पश्चिमोत्तर हिमालय शृंखला के अंतिम किनारे से अलग कर दक्षिणपश्चिम दिशा में पाकिस्तान के मैदानी इलाकों की ओर बहती हैं।
बीस वित्त मंत्रियों और सेंट्रल बैंक के गवर्नर्स का समूह (जी20,जी -20 और बीस का समूह के रूप में भी जाना जाता है), जो कि विश्व की 20 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के वित्त मंत्रीयों और केंद्रीय बैंक के गवर्नर्स का एक संगठन है, जिसमें 19 देश और यूरोपीय संघ शामिल हैं। जिसका प्रतिनिधित्व यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष और यूरोपीय केंद्रीय बैंक द्वारा किया है।[2] 12 वें जी -20 शिखर सम्मेलन का आयोजन 7और 8 जुलाई 2017 को हैैैम्बर्ग { जर्मनी } में चान्सलर एन्जेला मर्केल की अध्यक्षता में संपन्न हुआ।
ब्रह्मपुत्र एक नदी है। यह तिब्बत, भारत तथा बांग्लादेश से होकर बहती है। ब्रह्मपुत्र का उद्गम हिमालय के उत्तर में तिब्बत के पुरंग जिले में स्थित मानसरोवर झील के निकट होता है,[1] जहाँ इसे यरलुङ त्सङ्पो कहा जाता है। तिब्बत में बहते हुए यह नदी भारत के अरुणांचल प्रदेश राज्य में प्रवेश करती है।[2] आसाम घाटी में बहते हुए इसे ब्रह्मपुत्र और फिर बांग्लादेश में प्रवेश करने पर इसे जमुना कहा जाता है। पद्मा (गंगा) से संगम के बाद इनकी संयुक्त धारा को मेघना कहा जाता है, जो कि सुंदरबन डेल्टा का निर्माण करते हुए बंगाल की खाड़ी में जाकर मिल जाती है।[3]
ब्रह्मपुत्र नदी एक बहुत लम्बी (2900 किलोमीटर) नदी है। ब्रह्मपुत्र का नाम तिब्बत में सांपो, अरुणाचल में डिहं तथा असम में ब्रह्मपुत्र है। ब्रह्मपुत्र नदी बांग्लादेश की सीमा में जमुना के नाम से दक्षिण में बहती हुई गंगा की मूल शाखा पद्मा के साथ मिलकर बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती है। सुवनश्री, तिस्ता, तोर्सा, लोहित, बराक आदि ब्रह्मपुत्र की उपनदियां हैं। ब्रह्मपुत्र के किनारे स्थित शहरों में डिब्रूगढ़, तेजपुर एंव गुवाहाटी हैं। ब्रह्मपुत्र की औसत गहराई 38 मीटर (124 फीट) तथा अधिकतम गहराई 120 मीटर (380 फीट) है। प्रायः भारतीय नदियों के नाम स्त्रीलिंग में होते हैं पर ब्रह्मपुत्र एक अपवाद है। संस्कृत में ब्रह्मपुत्र का शाब्दिक अर्थ ब्रह्मा का पुत्र होता है।
इस नदी का उद्गम तिब्बत में कैलाश पर्वत के निकट जिमा यॉन्गजॉन्ग झील है। आरंभ में यह तिब्बत के पठारी इलाके में, यार्लुंग सांगपो नाम से, लगभग 4000 मीटर की औसत उचाई पर, 1700 किलोमीटर तक पूर्व की ओर बहती है, जिसके बाद नामचा बार्वा पर्वत के पास दक्षिण-पश्चिम की दिशा में मुङकर भारत के अरूणाचल प्रदेश में घुसती है जहां इसे सियांग कहते हैं।
उंचाई को तेजी से छोड़ यह मैदानों में दाखिल होती है, जहां इसे दिहांग नाम से जाना जाता है। असम में नदी काफी चौड़ी हो जाती है और कहीं-कहीं तो इसकी चौड़ाई 10 किलोमीटर तक है। डिब्रूगढ तथा लखिमपुर जिले के बीच नदी दो शाखाओं में विभक्त हो जाती है। असम में ही नदी की दोनो शाखाएं मिल कर मजुली द्वीप बनाती है जो दुनिया का सबसे बड़ा नदी-द्वीप है। असम में नदी को प्रायः ब्रह्मपुत्र नाम से ही बुलाते हैं, पर बोडो लोग इसे भुल्लम-बुथुर भी कहते हैं जिसका अर्थ है- कल-कल की आवाज निकालना।
ब्रिक्स (BRICS) उभरती राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं के एक संघ का शीर्षक है। इसके घटक राष्ट्र ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका हैं। इन्हीं देशों के अंग्रेज़ी में नाम के प्रथमाक्षरों B, R, I, C व S से मिलकर इस समूह का यह नामकरण हुआ है।[1] इसकी स्थापना २००९ में हुई,और इसके ५ सदस्य देश है। मूलतः, 2010 में दक्षिण अफ्रीका के शामिल किए जाने से पहले इसे "ब्रिक" के नाम से जाना जाता था। रूस को छोडकर[2], ब्रिक्स के सभी सदस्य विकासशील या नव औद्योगीकृत देश हैं जिनकी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है। ये राष्ट्र क्षेत्रीय और वैश्विक मामलों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। वर्ष २०१९ तक, पाँचों ब्रिक्स राष्ट्र दुनिया की लगभग ४२% आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं और एक अनुमान के अनुसार ये राष्ट्र संयुक्त विदेशी मुद्रा भंडार में ४ खरब अमेरिकी डॉलर का योगदान करते हैं। इन राष्ट्रों का संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद १५ खरब अमेरिकी डॉलर का है। ब्रिक्स देशों का वैश्विक जीडीपी में 23% का योगदान करता है तथा विश्व व्यापार के लगभग 18% हिस्से में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसे R-5 के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इन पांचों देशों की मुद्रा का नाम 'R' से शुरू होता है। [3] वर्तमान में, चीन ब्रिक्स का14th समूह की अध्यक्षता करता है। ब्रिक्स का 13th शिखर सम्मेलन भारत में हुआ।
भारत की नदियों का देश के आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास में प्राचीनकाल से ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सिंधु (सिन्धु) तथा गंगा (गङ्गा) नदी की घाटियों में ही विश्व की सर्वाधिक प्राचीन सभ्यताओं - सिंधु (सिन्धु) घाटी तथा आर्य सभ्यता का आर्विभाव हुआ। आज भी देश की सर्वाधिक जनसंख्या एवं कृषि का संकेंद्रण (संकेन्द्रण) नदी घाटी क्षेत्रों में पाया जाता है। प्राचीन काल में व्यापारिक एवं यातायात की सुविधा के कारण देश के अधिकांश नगर नदियों के किनारे ही विकसित हुए थे तथा आज भी देश के लगभग सभी धार्मिक स्थल किसी न किसी नदी से संबद्ध (सम्बद्ध) है।
नदियों के देश कहे जाने वाले भारत में मुख्यतः चार नदी प्रणालियाँ है (अपवाह तंत्र) हैं। उत्तरी भारत में सिंधु, मध्य भारत में गंगा, उत्तर-पूर्व भारत में ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली है। प्रायद्वीपीय भारत में नर्मदा कावेरी महानदी आदी नदियाँ विस्तृत नदी प्रणाली का निर्माण करती हैं।
भारत की नदियों को चार समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे :-
- हिमालय से निकलने वाली नदियाँ
- दक्षिण से निकलने वाली नदियाँ
- तटवर्ती नदियाँ
- अंतर्देशीय नालों से द्रोणी क्षेत्र की नदियाँ
हिमालय भारत में स्थित एक प्राचीन पर्वत श्रृंखला है | हिमालय को पर्वतराज भी कहते हैं जिसका अर्थ है पर्वतों का राजा |। कालिदास तो हिमालय को पृथ्वी का मानदंड मानते हैं। हिमालय की पर्वतश्रंखलाएँ शिवालिक कहलाती हैं। सदियों से हिमालय की कन्दराओं (गुफाओं) में ऋषि-मुनियों का वास रहा है और वे यहाँ समाधिस्थ होकर तपस्या करते हैं । हिमालय आध्यात्म चेतना का ध्रुव केंद्र है। उत्तराखंड को श्रेय जाता है इस "हिमालयानाम् नगाधिराजः पर्वतः" का हृदय कहाने का। ईश्वर अपने सारे ऐश्वर्य- खूबसूरती के साथ वहाँ विद्यमान है। 'हिमालय अनेक रत्नों का जन्मदाता है ( अनन्तरत्न प्रभवस्य यस्य), उसकी पर्वत-श्रंखलाओं में जीवन औषधियाँ उत्पन्न होती हैं ( भवन्ति यत्रौषधयो रजन्याय तैल पुरत सुरत प्रदीपः), वह पृथ्वी में रहकर भी स्वर्ग है।( भूमिर्दिवभि वारूढं)। हिमालय एक पर्वत तन्त्र है जो भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया और तिब्बत से अलग करता है। यह पर्वत तन्त्र मुख्य रूप से तीन समानांतर श्रेणियां- महान हिमालय, मध्य हिमालय और शिवालिक से मिलकर बना है जो पश्चिम से पूर्व की ओर एक चाप की आकृति में लगभग 2400 कि॰मी॰ की लम्बाई में फैली हैं।[2] इस चाप का उभार दक्षिण की ओर अर्थात उत्तरी भारत के मैदान की ओर है और केन्द्र तिब्बत के पठार की ओर है। इन तीन मुख्य श्रेणियों के आलावा चौथी और सबसे उत्तरी श्रेणी को परा हिमालय या ट्रांस हिमालय कहा जाता है जिसमें कराकोरम तथा कैलाश श्रेणियाँ शामिल है। हिमालय पर्वत 7 देशों की सीमाओं में फैला हैं। ये देश हैं- पाकिस्तान,अफगानिस्तान , भारत, नेपाल, भूटान, चीन और म्यांमार।
अन्तरिक्ष से लिया गया हिमालय का चित्र
संसार की अधिकांश ऊँची पर्वत चोटियाँ हिमालय में ही स्थित हैं। विश्व के 100 सर्वोच्च शिखरों में हिमालय की अनेक चोटियाँ हैं। विश्व का सर्वोच्च शिखर माउंट एवरेस्ट हिमालय का ही एक शिखर है। हिमालय में 100 से ज्यादा पर्वत शिखर हैं जो 8848.86 मीटर से ऊँचे हैं। हिमालय के कुछ प्रमुख शिखरों में सबसे महत्वपूर्ण सागरमाथा हिमाल, अन्नपूर्णा, शिवशंकर, गणेय, लांगतंग, मानसलू, रॊलवालिंग, जुगल, गौरीशंकर, कुंभू, धौलागिरी और कंचनजंघा है।[3] हिमालय श्रेणी में 15 हजार से ज्यादा हिमनद हैं जो 12 हजार वर्ग किलॊमीटर में फैले हुए हैं। 72 किलोमीटर लंबा सियाचिन हिमनद विश्व का दूसरा सबसे लंबा हिमनद है। हिमालय की कुछ प्रमुख नदियों में शामिल हैं - सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र और यांगतेज।
भू-निर्माण के सिद्धांतों के अनुसार यह भारत-आस्ट्रेलिया प्लेटों से एशियाई प्लेट को टकराने से बना है। हिमालय के निर्माण में प्रथम उत्थान 650 लाख वर्ष पूर्व हुआ था और मध्य हिमालय का उत्थान 450 लाख वर्ष पूर्व[4]
हिमालय में कुछ महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल भी है। इनमें हरिद्वार, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गोमुख, देव प्रयाग, ऋषिकेश, कैलाश, मानसरोवर तथा अमरनाथ,शाकम्भरी प्रमुख हैं। भारतीय ग्रंथ गीता में भी इसका उल्लेख मिलता है (गीता:10.25)।[5]
हिमालय का निर्माण
जहाँ आज हिमालय है वहां कभी टेथिस नाम का सागर लहराता था। यह एक लम्बा और उथला सागर था। यह दो विशाल भू - खन्डो से घिरा हुआ था। इसके उत्तर में अंगारालैन्ड और दक्षिण में गोन्ड्वानालैन्ड नाम के दो भू - खन्ड थे । लाखों वर्षों इन दोनों भू - खन्डो का अपरदन होता रहा और अपरदित पदार्थ (मिट्टी, कन्कड, बजरी, गाद आदि) टेथिस सागर में जमा होने लगे । ये दो विशाल भू - खन्ड एक - दुसरे की ओर खिसकते भी रहे। दो विरोधी दिशाओ में पड़ने वाले दबाव के कारण सागर में जमी मिट्टी आदि की परतो में मोड़ (वलय) पड़ने लगे। ये वलय द्वीपों की एक श्रृंखला के रूप में पानी की सतह् से ऊपर आ गए। यह क्रिया निरंतर चलती रही और कलान्तर में विशाल वलित पर्वत श्रेणियो के निर्माण हुआ जिन्हे आज हम हिमालय के नाम से जाना जाता हैं।